Maa Ke Upar Kavita

Maa Ke Upar Kavita

Maa Ke Upar Kavita

विपदाओं का करता स्वागत
नित नित बाँह पसार कर,
नव निर्माण करो अब माँ
बीता हुआ बिसार कर।

सुख दुःख जीवन के साथी है
संग गाते हँसते रोते है
छुपी हुई आशाओं से
धुंधली दृष्टि को धोते है
तेरी ममता की छाँव से मैं
आया हूँ जग को हार कर
कद कर दे हिम से ऊँचा माँ
कर्मों को मेरे निहार कर।

विपदाओं का करता स्वागत
नित नित बाँह पसार कर,
नव निर्माण करो अब माँ
बीता हुआ बिसार कर।

कितनी सुंदर कितनी कोमल
प्रेम की यह परिभाषा है
तुमसे ही शुरू तुमपे ही ख़त्म
इस जीवन की हर आशा है
पथ में बोये कांटे सभी ने
अधरों को किया विषैला है
अश्कों का बहना रोक ले माँ
तू अमृत की बौछार कर।

विपदाओं का करता स्वागत
नित नित बाँह पसार कर,
नव निर्माण करो अब माँ
बीता हुआ बिसार कर।

हो बिंब तुम्ही प्रतिबिंब तुम्ही
तुमको खोने से डरता हूँ
सौ बार जन्म लेकर के माँ
सौ बार तुम्ही पर मिटता हूँ
चढ़ता दिन ढ़लती रातें
कण-कण में छवि तुम्हारी है
मिथ्या शब्दों की घुटन हटादे
मन को मेरे बुहार कर।

विपदाओं का करता स्वागत
नित नित बाँह पसार कर,
नव निर्माण करो अब माँ
बीता हुआ बिसार कर।

पढ़िए :- माँ की याद में कविता “मात बिना सून है संसार”


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