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मन की अभिलाषा कविता
मन मेरे किसी मोड़ पर हार जाना नहीं,
है कठिन पथ तेरा हर कदम
आखिरी सांस तक भूल जाना नहीं।
मन आशाओं की डोर रहा,
जीवन हर्षित कल्पनाओं की ओर रहा।
मन स्वप्न देखता रहता है,
मन अनुराग विवश हर ओर रहा।
मन रहा सदा अर्पित उन्मादो में
मन परिभाषित इति छोर रहा।
मन का निनाद छल छल बहता,
झंकृत हृदयांचल पुरजोर रहा।
मन आश्रित जीवन जीता
मन प्रेषित हर ओर रहा
मन निराकार मन संविकार
मन भीगे अंचल का छोर रहा
मन हार गया जग हार गया
मन जीत गया जग जीत गया
मन अस्थि मात्र का मोर रहा
मन मीत सा न कोई और रहा
जीवन में हर ओर यही तो शोर रहा
मन देता धीरज द्रवित हृदय तन
मन अनुपम चितचोर रहा
मन आकांक्षाओं की डोर रहा
मन आकांक्षी दौर रहा ।
- पढ़िए :- मेरी अभिलाषा पर कविता
रचनाकार कर परिचय :-
नाम – अवस्थी कल्पना
पता – इंद्रलोक हाइड्रिल कॉलोनी , कृष्णा नगर , लखनऊ
शिक्षा – एम. ए . बीएड . एम. एड
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Ati sundar