मंजिल पर कविता | Manjil Par Kavita

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मंजिल पर कविता

मंजिल पर कविता

सबको याद रखना है, अपनी अपनी मंजिल।
जीवन में आए है, तो हासिल करना है मंजिल।

मंजिल दर मंजिल, चढ़ते जाना है हमें।
पर अपनी जड़ों को, याद रखना पड़ेगा हमें।

वैसे मंजिल पाना, होता नहीं आसान।
पर लगातार प्रयास ही, बना देते है उसे आसान।

जैसे नन्ही चींटी, दीवार पर चढ़ती है।
गिरती है बार-बार,पर निरंतर प्रयास करती है।,

एक समय ऐसा आता है, वह अपनी मंजिल को पा जाती है।
कोशिश करने वालों की, कभी हार नहीं होती‌ है।

धीरे धीरे चल कर देखो, कछुए ने बाजी जीती‌ है।
लगातार प्रयास से, एक दिन मंजिल अवश्य मिलती है।

पढ़िए :- हिंदी कविता ” पराजय को न करना स्वीकार “


“रचनाकार का परिचय

हंसराज "हंस"
हंसराज “हंस” जी गत 30 वर्षो से अध्यापन का कार्य करवा रहे है। शिक्षा मे नवाचारों के पक्षधर है। “हैप्पी बर्थडे” “गांव का अखबार” इनके शैक्षिक नवाचार है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं में संदर्भ व्यक्ति (रिसोर्स पर्सन) के रूप में 8-10 वर्षों का अनुभव रखते है। तात्कालिक मुद्दों, जयंतियों व सामाजिक कुरीतियों पर आलेख लिखते रहते। मौलिक लेख विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व देश व प्रदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल व सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई वेबीनारो व फेसबुक लाइव प्रसारण पर विभिन्न मंचों के माध्यम से अपने मौलिक विचारों का प्रकटीकरण करते रहते है। शिक्षक संगठन व सामाजिक संगठनों में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए निरंतर सामाजिक सुधारों की ओर अग्रसर है।

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