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मदर्स डे पर कविता
मां का नाम जब लेता हूं
भर जाता है नव उत्साह।
जीवन के हर एक पथ में
मिल जाती हैं सुखद राह।।
सुबह सुबह बड़े प्यार से
बिस्तर से मुझको जागती है।
जब कभी मै रूठ जाता हूं
राजा बेटा कह कर मनाती हैं।।
कांटे बन जाते है प्रसून
तम मिटता होती है प्रभात।
विपत्ति हार करती स्वीकार
क्षण में होती प्रेम बरसात।।
मां का आशीष करता रक्षा
अनमोल है जिसकी कहानी।
सुत को जो लगी हो प्यास
तो रेगिस्तान में मिलता पानी।
मां के जैसा न कोई जग में
ईश्वर भी करते जिसकी पूजा।
निस्वार्थ भाव से पालती है
वैसा संसार में नहीं कोई दूजा।।
जिस मानव के पास होती है मां
होता वह बड़ा ही किस्मत वाला।
दुखमय अमावस के पलो में भी
रहता सदैव उसके घर उजाला।।
मां अपने प्यारे से बच्चो को
कहती मेरा राजदुलारा तू।
सर्वश्रष्ठ मानकर दोहराती है
नील गगन का सितारा तू।।
पढ़िए :- मातृ दिवस पर कविता ” मां जब जब मैं कहता हूं “
नमस्कार प्रिय मित्रों,
मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।
क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।
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