पर्यावरण संरक्षण पर हिंदी कविता

पर्यावरण संरक्षण पर हिंदी कविता

वृक्षों को काटकर मानव ने
वसुधा के साथ किया व्यापार,
नदियों को भी मैला कर के
जीवन में मचाया हाहाकार।

एक नहीं हैं किये अनंत
धरा ने मानव पर उपकार,
बदले में वह कर रहा
प्रकृति के हृदय पर वार।

मीठे फल तुम्हें भेंट किये
अनाज से भरे भंडार,
भेद भाव नहीं किया किसी से
एक सम्मान किया सबको प्यार।

सारे बीजों को अपनी मिटटी में
पाल-पोस कर किया तैयार,
ममता भरी नैनों से वसुधा ने
करुणा बरसायी हम पर भरमार।

भानु की लालिमा में तपकर
व्यथा झेली है बारम्बार,
निःस्वार्थ भाव से प्रेम तुम्हें
सुत मान कर किया अपार।

निशा जब डाला डेरा
पीड़ित हुआ सारा संसार,
शशि से तुमने आग्रह करके
विफल किया तम का वार।

चलो आज हम मिलकर के
समस्त त्रुटियाँ कर ले स्वीकार,
“वृक्ष लगाओ” सबके समक्ष
फैलाये यह अमूल्य विचार।

प्रकृति से प्रदूषण का
एकत्रित होकर करे संहार,
हरा-भरा बनाने से पूर्व
हम नहीं मानेंगे हार।

पढ़िए :- कविता पर्यावरण पर “वृक्ष काटने से कहीं खो गया”


नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुमार

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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