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पिता के लिए हिंदी कविता

पिता के लिए हिंदी कविता

पिता के लिए कोई,,,,
एक दिन नहीं होता,,,,
सब के सब दिन खास होते हैं,

घर के सूने आँगन में ,
पिता की यादों में
माँ की नम आंखों ने,,,,,,,
सब कुछ बयांँ किया।

कुछ ख्वाब थे,,,,,
कुछ मजबूरियां थी,,,,
पिता को जुदा करने में
हमारी जरूरते थी,,,, ।

मांगे थे,,,,,
चंद खिलौने हम भाई-बहनों ने
पिता ने नींद को बेच दिया ,,,
उन खिलौनों में ,,,,
हर ज़िद और हर मांग ,
हमारी पूरी की ,
जो मांगा वह सब दिया
समय दिया ,प्यार दिया,
नाम दिया और दी,,,
इज्जत शोहरत ,,,,,

अपनी जवानी को ,
हम पर लुटा दिया
फिक्र अपनी छोड़कर ,
हालातों से लड़ गया ,
थोड़ा प्यार ,स्नेह,
सम्मान उन्हें भी दे दो।
ताकि जो जवानी,
तुम पर लुटा दी ,
तो बुढ़ापा थोड़ा ,
आसान कर दो ,,

ना जाए कोई पिता ,
वृद्धा आश्रम
थोड़ी खुशी का,,,,,,
पैगाम उन्हें भी दे दो ।।


रचनाकार का परिचय

मीनाक्षी राजपूरोहित " मीनू "

नाम – मीनाक्षी राजपूरोहित ” मीनू ”
पिता – विशन सिंह राजपूरोहित
माता – पुष्पा राजपूरोहित
पता – पोस्ट – बस्सी
ज़िला – नागौर राजस्थान ,पिन, 341512
शिक्षा – स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य , समाजशास्त्र , इतिहास (महर्षि दयानन्द सरस्वती यूनिवर्सिटी अजमेर (राजस्थान)
कार्यक्षेत्र – गृह कार्य एवं विद्यार्थी

मीनाक्षीजी की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं इसके साथ ही उन्हें साहित्य जगत में कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं।

आत्मकथ्य – लेखन कुछ नया करने का एक आयाम है। अपने भाव, मन की मनोदशा को उतारना लिखना। क्योंकि साहित्य के बिना संस्कृति उदासीन है । मेरे जीवन का उद्देश्य है कि मेरी रचना पढ़कर किसी के जीवन को अगर दिशा मिली तो मेरा लिखना सफल होगा ।लिखना कोई मनोरंजन नहीं होता यहां लेखक अपने ह्रदय की गहराइयों से रचना को उकेरता है । हम हमारे जीवन को एक दिशा दे सकते हैं। “एक कवि की कल्पना शब्दों में बंधी नहीं होती” हम सृजन को किसी भी रुप में देश -भक्ति ,राष्ट्रीय एकता, प्रेम,मानवता माँ-पिता …
अत!साहित्य का आधार ही जीवन है। साहित्यकार आत्मसंतुष्टि ,
सुखानुभूति ,प्रेरणा ,जागृति संवेदना वह मानवीयता को प्रभावित करना है।लेखन अपने खुद के मनोभावों को व्यक्त करना जनमानस तक अपनी बात पहुंचाना । अपने काव्य द्वारा सामाजिक चेतना को जगाना में चाहती हूँ कि मैं ऐसा कुछ लिखूं कि मेरे लिखने से अगर मैं किसी के विचार बदल पाई तो मैं धन्य समझूंगी । बचपन से लिखने का शौक था। पर कोराना काल मैं फिर से लिखना शुरू किया। वैसे माँ बीमार थी तो माँ पर कुछ ना कुछ लिखना आदत हो गई तो मेरे बड़े जीजा राज कंवर ने मुझे लिखने के लिए जो प्रोत्साहित किया उसके लिए हृदय से आभारी हूँ । आप सभी बड़ो का व परिवार जन का आशीर्वाद बना रहे ऐसी उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को आगे बढ़ाने की कोशिश करती हूँ

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