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पितृपक्ष पर कविता

पितृपक्ष पर कविता

प्रत्यक्ष पितृपक्ष के उपलक्ष के समक्ष हो,
नमन करूं विभुतियों के दिव्य योगदान को ।
पुरुषत्व के महत्व का पर्याय जो बनते रहे,
कृतज्ञ भाव से सहेजते रहूं सम्मान को ।।

प्रखर प्रवीर वीर धीर सारथी गंभीर बनके,
मातृभूमि के लिए सर्वस्व त्याग कर गए ।
पुरखों के परिश्रम का तो उपकार ही अनंत है ,
जो मेरे अस्तित्व में अनुराग आग भर गए ।।

एहसान का बखान किसी शब्द शक्ति में नहीं,
निशब्द शब्द भाव को पहचान लीजिए जरा ।
जर्जर हालात में भी थी सुधार की वो बात,
की ना मिट सके अमिट निशान ध्यान दीजिए जरा ।।

अनंत कोटि कार्य से स्वीकार्य थी चुनौतियां,
चुनौतियों के वक्ष पे हो दक्ष लक्ष भेदते ।
निस्वार्थ प्रेम भाव से आगे जो बढ़ रहे कदम,
कदम कदम पे हर कदम भविष्य स्वच्छ देखते ।।

मिटे ना मातृभूमि का गौरव गुमान गान ज्ञान,
कर्म को प्रधान मान धर्म नित्य साधते ।
विकल विफल बेदर्द वक्त सख्त था बुरा मगर,
यति बने ब्रति बने विध्वंसता को लांघते ।।

कोलाहलों के दौर में भी अक्ष पे खड़े रहें,
डटे वही हटे नहीं भले हो मृत्य का वरण ।
शिखा सिरों पे धारना भी थी सजाए मौत सी,
परन्तु वे भूले नहीं निज धर्म का नित आचरण ।।

राम जी का नाम हो या देव देवी धाम हो,
उन्हें पसंद था नहीं तीरथ बरत औ साधना ।
जजिया प्रथम जमा करो तो मिल सकेगी अनुमति,
भजन पूजन से होती बादशाह की अवमानना ।।

प्रतिकूल थी परिस्थिति पर धर्म पे अड़े थे वे ,
अनेक कष्ट नष्ट कर रहे थे इष्ट भाव को ।
वो आन मान स्वाभिमान ताक पे रखे नहीं,
धरम ध्वजा को थाम के वो सह गए प्रभाव को ।।

पीढ़ियों तक रक्त को विरक्त न होने दिया,
औ जन्म देके धर्म कर्म को निहाल कर दिया ।
आज उन्हीं पूर्वजों के अंश से ये वंश चला,
और छत्र छाया ने तो मालामाल कर दिया ।।

काग के स्वरूप के प्रतिरूप को स्वीकारते ,
हुए मैं याद कर रहा हूं पूर्व के प्रकाश को ।
भूलने न दूंगा उनके कर्म के विधान को,
औ याद से आबाद करता रहूंगा इतिहास को ।।

कर्म जो उत्साह में आदर्श का प्रवाह दे,
उस भाव के स्वभाव में ही भोग मैं लगाऊंगा ।
बार बार करके नमस्कार पूर्वजों के नाम,
पितृपक्ष को मैं जोर शोर से मनाऊंगा ।।

पढ़िए :- पिता के ऊपर कविता “आंसुओं को हमारे”


रचनाकार का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव

धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश

स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
शिक्षा – स्नातक

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