इन्सान मेहनत करता है कि उसे सुकून से दो वक़्त की रोटी मिल सके। रोटी के कारण ही सारी दुनिया कुछ न कुछ काम करती है। लेकिन क्या होता है जब इन्सान की भूख सिर्फ रोटी तक ही नहीं रह जाती। बल्कि वो और भी कई चीजों की चाहत रखता है। आइये पढ़ते हैं ( Roti Par Kavita ) रोटी पर कविता में :-

रोटी पर कविता

रोटी पर कविता

अरविन्द शयनं प्रजाजन के पालक
कमलकार नयनं हे श्रुष्टि संचालक,
जहाँ के प्रवर्तक हे युग के प्रचारक,
तेरी एक रचना बड़ी कष्टकारक,
अगर आप इसको बनाये न होते,
तो मन को में रुदन की कहानी न होती !!
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

प्रबल भूख की जब चले तानाशाही,
तो सबको विवश कर मचाती तबाही,
सकल प्राणियों के है दिल का ये दुखड़ा,
लगे भूख तो होती है त्राहि त्राहि,
रोटी को गर तुम तवज्जो न देते,
तो ये बचपन बुढ़ापा जवानी न होती ।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

जो राजा गरीबी का झोका न देखे,
कभी वक्त से कोई धोखा न देखे,
जहाँ हीरे मोती महल को सजाते,
जो श्रीराम गम का कोई मौका न देखे
कुटिल भूख से वो भी रोये थे वन में,
जहाँ राम संग सीता रानी भी रोती ।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

गोकुल का ग्वाला जो सबसे निराला,
जो मिश्री औ माखन का करते निवाला,
चने छीनकर के सुदामा से खाये,
जब इस भूख ने पेट पर डाका डाला,
इसी भूख की सच्ची महिमा बताने,
को उनको भी लीला दिखानी ही होती ।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

मगधराज अशोक महा यशश्वी,
लहरती थी जिनकी पताका तेजस्वी,
डगर भूल बैठे घने जंगलों में,
तो विवशता में तरु पत्र खाये मनस्वी,
रोटी की कीमत समझना ही होगा
मेहनत की सच्ची दीवानी है रोटी ।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

अकबर मुग़ल काल में जब लड़ा था,
जहाँ राजपूतों का राणा खड़ा था,
इसी भूख से जब वो व्याकुल हुए थे,
तो घासों की रोटी ही खाना पड़ा था,
सारा बड़प्पन बिगड़ जाता यारों
जब खुद मुश्किलों में जुटानी हो रोटी।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

पैसों का अभिमान क्यूँ कर रहे हो,
किसी को परेशान क्यूँ कर रहे हो,
इन्ही धन की कूवत में खोकर के यारों
रोटी का अपमान क्यूँ कर रहे हो,
रोटी का मतलब तेरी नाड़ियों में,
प्रवाहित लहू की रवानी है रोटी।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

हंसाती है रोटी रुलाती है रोटी,
जगाती है रोटी सुलाती है रोटी,
रोटी के कारण मरे जा रहे हो,
ये दर दर की ठोकर खिलाती है रोटी,
भले स्वाद के तुम दीवाने हों हर पल,
पर जीतेन्द्र की तो कहानी है रोटी।।
महज एक रोटी से चलता जमाना
यहाँ पे हर प्राणी को खानी है रोटी ।।

पढ़िए :- दो जून की रोटी कविता “रोटी के महत्व पर कविता”


रचनाकार का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव

धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश

स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
शिक्षा – स्नातक

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