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सब्जियों पर हास्य कविता

सब्जियों पर हास्य कविता

आलू,प्याज, भिन्डी से बैंगन की हुई लड़ाई।
सब्जी मंडी में एक अकेला, क्या करें चौलाई।।

भिन्डी प्याज लड़ न पाए,आलू की बारी आई।
आलू बोला टमाटर से बैंगन को समझा मेरे भाई।।

बैंगन बोला हमको भी बताओं तुम्हारा इरादा।
तू सब्जी मंडी से चले जाओ मुझसे उलझो न ज्यादा।।

मैं गोल-मटोल हूॅं ताजा-ताजा।
मैं सभी सब्जियों का हूॅं राजा।।

मेरे बिना सब्जी अधुरी सी लगती हैं।
मेरे बिना आलू भजिया समोसा कहां बनती हैं।।

मुझको जो खाता है उनका कार्बोहाइड्रेट बढ़ाऊं।
जिस सब्जी में पढ़ जाऊं उसका भी स्वाद बढ़ाऊं।।

मेरे सामने फिकी है टिन्ठा अरबी पेठा।
तू भी खाकर देखो आलू का पराठा।।

गाहक का कर देता है तू गन्दा थैला।
तू है बेढंगा, भद्दा धूसर रंग मटमैला।।

मटमैला हूॅं तो क्या हुआ आता हूॅं गठिया में काम।
चीनी जापानी सबसे पुछो बताएगा मेरा नाम।।

आलू की बात सुनकर बैंगन भड़क उठी।
और बोली न कर बड़ाई अपनी झुठी-मुठी।।

अपनी बुराई सुनकर आलू को गुस्सा आया।
फिर सबके सामने बैंगन का जो बैंड बजाया।।

सुन बैंगन दीदी तू है काली कलुटी-काली।
यह सुनकर बैंगन बोली हमको न दे गाली।।

तेरे सब्जी खाने से निवाला भी हो जाए काला।
इसलिए नहीं है तुमको ज्यादा खानेवाला।।

मेरे सिर पर ताज है इसलिए मैं हूॅं सरताज।
बस तुम नाम के राजा मैं करता हूॅं राज।।

काला रंग मेरा है पर मैं हूॅं साग निराला।
बढ़े चाव से खाते हैं मुझको खानेवाला।।

बैंगन बोला क्या तुमने बैंगन का भर्ता खाया।
जिससे पुछो वहीं कहेगा बड़ा मज़ा आया।।

एक रंग का नहीं हूॅं, मैं हरा सफेद बैंगनी नीला।
आलू भैय्या समझा रहा हूॅं, फिर बोलना न मुझे काला।।

दोनों के बीच नोंक झोंक से सब्जी मंडी में सनसनी छाई।
ये सब सुनकर दौड़े-दौड़े दादी पालक सयानी आई।।

आलू और बैंगन के बीच पालक ने सुलाह करवाया।
सब अपने गुण का धनी है,यह कहकर समझाया।।

सुनो, आपस में मिल-जुलकर रहो मेरे भाई।
थोड़ी-थोड़ी बात में तुम लोग न करो लड़ाई।।

अपने-अपने मन से तुम बैर का भाव निकाल दो।
आपस में अब गले मिलो गुस्सा करना छोड़ दो।।

आलू और बैंगन के बीच अगर शत्रुता होगा।
फिर दुसरे सब्ज़ियों के बीच कैसे मित्रता होगा।।

तो आलू और बैंगन की तरकारी कैसे बन पाएगा।
फिर मानव आलू-बैंगन की सब्जी कैसे खा पाएगा।।

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बिसेन कुमार यादव

यह कविता हमें भेजी है बिसेन कुमार यादव जी ने गाँव-दोन्देकला, रायपुर, छत्तीसगढ़ से।

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