वीरों पर कविता – आप पढ़ रहे हैं भारत के वीरों पर कविता ” नमन करूँ या पुष्प चढ़ाऊँ ” :-

Veero Par Kavita
वीरों पर कविता

वीरों पर कविता

नमन करूँ या पुष्प चढ़ाऊँ,
इस धरा के प्यारे वीरों को,
खुद को भुला के राह दिखाई,
अंधे ओर अधिरों को

जीवन के छोड़ भोग,
अनवरत लेखन में जुटे रहे,
अपनी विचार धारा की
धार को लेखनी लेकर कुटे रहे

किये पैने फिर छोड़ दिये
शब्द रूपी उन तीरों को;
नमन करूँ या पुष्प चढ़ाऊँ,
इस धरा के प्यारे वीरो को

गरम सर्द ,मजबूर हाल
कुछ भोगों के भी योगों में
लेखन डोर हस्त प्रकास लिए,
खुशहाल वियोगों में,

चित आनंद हो परमानंद,
धूड़ दौड़ विचार की रोगों में,
भूतल से अविचल गगन चढ़े,
ओर चले आम हो लोगों में।

जिसे कहा किसी ने विज्ञान नही,
बने मूर्ख जिनको
ज्ञान नही,
ले आये आनंद की धारा को,

उन राहियों को उन सीरों को,
नमन करूँ या पुष्प चढ़ाऊँ,
इस धरा के प्यारे वीरों को

सौ पैमानो की छलनियों से
सत्य झूठ को छांट दिया,
करने को राह सफल,
अंधेरों को रगों में काट दिया,

हर चीज़ को कण कण बाट दिया,
समझ की नली रुधिरों को,
उन संतों को उन पीरों को,
गल बंध सुस्वर्ण जंजीरों को

नमन करूँ या पुष्प चढ़ाऊँ,
इस धरा के प्यारे वीरों को

सोचो खोए होंगे जब वो
कोई शब्द राह जब मिली नहीं,
वो मंथन क्या मंथन होगा
जिसमें सांस रुकी ओर हिली नही,

मानव हित धार चले होंगे,
जब सौ विचार चले होंगे,
विकास अमर मिट्टी होगी,
जिसमें सुरमा जने होंगे।

दृश्य,कृत्य, बोल, स्मृत्य
लेखन कला अनमोल रही
जब पढ़ें पीढ़ीयां याद करें,
इतिहास रूप में बोल रही

ज्ञान दीप ये सिपाही हैं
अनमोल बात जो इनने कही
सत्य को लिखित बताऊं क्या है
जो है सत्य वही बात सही

जो बदल दे सोंच को पाश कलम में,
दे दे सांस अजीरों (मैदानों रेत ) को।
नमन करूँ या पुष्प चढ़ाऊँ,
इस धरा के प्यारे वीरों को

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रचनाकार का परिचय

विकास तंवर खेड़ी

यह रचना हमें भेजी हैं विकास तंवर खेड़ी जी ने।

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