ग़ज़ल तर्क वितर्क
मुश्क़िलों को समझें तर्क – वितर्क करें ,
मज़हबों में नहीं सोच में फ़र्क़ करें।
कोहिनूर भी किसी ने चुरा लिया था ,
कमाई दौलत को समझकर ख़र्च करें।
मंज़िलें , क़ामयाबी भी तब ही मिलेगी ,
चलने से पहले अपना इरादा ज़र्फ़ करें।
पर जहाँ पर भी आए दिल का मामला ,
ख़ुद को नहीं आँखों को सतर्क करें।
फ़िर भी किसी को दिक़्क़त परेशानी आए ,
घबराएं नहीं सीधा हमसे संपर्क करें।
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यशु जान (9 फरवरी 1994-) एक पंजाबी कवि और लेखक हैं। वे जालंधर सिटी से हैं। उनका पैतृक गाँव चक साहबू अप्प्रा शहर के पास है। उनके पिता जी का नाम रणजीत राम और माता जसविंदर कौर हैं । उन्हें बचपन से ही कला से प्यार है। उनका शौक गीत, कविता और ग़ज़ल गाना है। वे विभिन्न विषयों पर खोज करना पसंद करते हैं। वे अपनी उपलब्धियों को अपनी पत्नी श्रीमती मृदुला के प्रमुख योगदान के रूप में स्वीकार करते हैं।
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धन्यवाद।
nice one read krke acha laga