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गुल्लक पर कविता

गुल्लक पर कविता

बचत करना है जरूरी,
बच्चों की डालो आदत।
जेब खर्च से सीखे बचाना,
फिजूलखर्ची की मत दो इजाजत।

बचपन में पड़ी अच्छी आदत,
कभी भी नहीं भुली जाती।
मितव्ययी बने सब,
बच्चे हो या नाती।

रोज की बचत को,
गुल्लक में रखो जमाकर।
बुरे वक्त में काम देगी ऐसी,
जैसे रखी हो कमाकर।

मितव्ययी और कंजूसी का,
फर्क समझो और समझाओ।
जीवन में स्वयं भी मानो,
और संतति को भी मनवाओ।

शान शौकत की दुनिया में,
आमदनी से ज्यादा हो रहा है खर्चा।
इसलिए परिवार, समाज में,
इस पर जमकर होनी चाहिए चर्चा।

पैसा अगर पास है तो,
वर्तमान व भविष्य सुधरेगा।
जीवन खुशहाल होगा,
बुढ़ापा अच्छे से गुजरेगा।

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“रचनाकार का परिचय

हंसराज "हंस"
हंसराज “हंस” जी गत 30 वर्षो से अध्यापन का कार्य करवा रहे है। शिक्षा मे नवाचारों के पक्षधर है। “हैप्पी बर्थडे” “गांव का अखबार” इनके शैक्षिक नवाचार है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं में संदर्भ व्यक्ति (रिसोर्स पर्सन) के रूप में 8-10 वर्षों का अनुभव रखते है। तात्कालिक मुद्दों, जयंतियों व सामाजिक कुरीतियों पर आलेख लिखते रहते। मौलिक लेख विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व देश व प्रदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल व सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई वेबीनारो व फेसबुक लाइव प्रसारण पर विभिन्न मंचों के माध्यम से अपने मौलिक विचारों का प्रकटीकरण करते रहते है। शिक्षक संगठन व सामाजिक संगठनों में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए निरंतर सामाजिक सुधारों की ओर अग्रसर है।

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