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हिंदी कविता अजीज परिंदा

हिंदी कविता अजीज परिंदा

पिंजरे में पंख फड़फड़ाता परिंदा था।
रहने को साथ मिरे,घबराता परिंदा था।

दस्तक देता जब मैं,उसके पिंजरे पर,
देख,दरवाजा खड़खड़ाता परिंदा था।

पंछी को अक्सर मैं ही दाना देता था,
मुझे कहकर जान, चिढ़ाता परिंदा था।

राब्ता इक़ अर्से ही, मुझसे रक्खा था।
मुझे मिलने अक्सर आता परिंदा था।

अपना करने खातिर मैंने बंद किया।
खातिर मेरी गिड़गिड़ाता परिंदा था।

बहेलिए ने जाल बिछाए रक्खा था।
आजादी को लड़खड़ाता परिंदा था।

अज़ीज था मुझको तब तो जिंदा था।
आजाद हो फिर तड़पाता परिंदा था।

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हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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