हिंदी कविता परछाई – प्रस्तुत है हंसराज हंस जी द्वारा रचित रचना :-

हिंदी कविता परछाई

हिंदी कविता परछाई

जीवन है बहुत छोटा,
मत बनो हरजाई।
करो दीनों की सेवा,
बन उनकी परछाई।

दुखियों की न जाने,
कोई पीर पराई।
कर रोज पाप कर्म,
मत खोदो अपनी खाई।

नर सेवा ही नारायण सेवा,
जान करो सबसे प्रीत।
बन मानव की परछाई,
गाओ खुशी के गीत।

मां तो मां होती है,
पर बेटी है उसकी परछाई।
हर समय तैयार रहती,
मां की मिटाने को तन्हाई।

हर राज की राजदार,
होती है हमारी परछाई।
अच्छे बुरे सब कर्मों का,
हिसाब रखती है पाई पाई। 

इसलिए हंसराज हंस कहे,
दीन हीन की बन परछाई।
बन जाओ उनके,
हर मर्ज की दवाई।

यह मतलबी है दुनिया,
नहीं कुछ सांसारिक माया में।
एक दिन सब छोड़कर चले,
जाएंगे ईश्वर की छत्रछाया में।

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रचनाकार का परिचय

हंसराज "हंस"

हंसराज “हंस” जी गत 30 वर्षो से अध्यापन का कार्य करवा रहे है। शिक्षा मे नवाचारों के पक्षधर है। “हैप्पी बर्थडे” “गांव का अखबार” इनके शैक्षिक नवाचार है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं में संदर्भ व्यक्ति ( रिसोर्स पर्सन ) के रूप में 8-10 वर्षों का अनुभव रखते है। तात्कालिक मुद्दों, जयंतियों व सामाजिक कुरीतियों पर आलेख लिखते रहते।

मौलिक लेख विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व देश व प्रदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल व सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई वेबीनारो व फेसबुक लाइव प्रसारण पर विभिन्न मंचों के माध्यम से अपने मौलिक विचारों का प्रकटीकरण करते रहते है। शिक्षक संगठन व सामाजिक संगठनों में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए निरंतर सामाजिक सुधारों की ओर अग्रसर है।

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