हिंदी कविता प्रतिज्ञा – हंसराज जी द्वारा रचित प्रतिज्ञा पर कविता :-
हिंदी कविता प्रतिज्ञा
मां गंगा से लेकर,
भीष्म पितामह ने आज्ञा
अविवाहित रहूंगा जीवन भर,
की थी भीष्म प्रतिज्ञा।
पिता के वचन की,
श्रीराम ने नही की अवज्ञा।
चौदह वर्ष के वनवास की,
पूरी की भीषण प्रतिज्ञा।
मातृभूमि की रक्षा खातिर,
वन वन भटके प्रताप।
मेवाड़ की आन बान के लिए,
झेले कष्ट सहे नाना संताप।
महाराणा प्रताप थे साहसी,
भरी थी उनमे खूब प्रज्ञा।
आतातायी मुगलों से,
मातृभूमि रक्षा ली प्रतिज्ञा।
इसलिए यह कहावत भी,
कई वर्षों से जा रही है कही।
रघुकुल रीत सदा चली आई,
प्राण जाए पर वचन न जाए
चाणक्य की प्रतिज्ञा ने,
चंद्रगुप्त को सम्राट बनाया।
महाराणा की प्रतिज्ञा ने,
मुगलों को खूब छकाया।
बाल ध्रुव की प्रतिज्ञा ने,
उसे ऋषि पद दिलवाया।
वीर शहीदों की प्रतिज्ञा ने,
अंग्रेजों के छक्के छुड़ाऐ।
राणा के गाड़ियां लौहरों ने,
राणा का खूब साथ निभाया।
अपनी प्रतिज्ञा के खातिर,
अपना गांव नही बसाया।
प्रतिज्ञित व्यक्ति होता है,
धुन का पक्का मन का सच्चा।
अपनी आन के खातिर,
काम नहीं करता कभी कच्चा।
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रचनाकार का परिचय
हंसराज “हंस” जी गत 30 वर्षो से अध्यापन का कार्य करवा रहे है। शिक्षा मे नवाचारों के पक्षधर है। “हैप्पी बर्थडे” “गांव का अखबार” इनके शैक्षिक नवाचार है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं में संदर्भ व्यक्ति ( रिसोर्स पर्सन ) के रूप में 8-10 वर्षों का अनुभव रखते है। तात्कालिक मुद्दों, जयंतियों व सामाजिक कुरीतियों पर आलेख लिखते रहते।
मौलिक लेख विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व देश व प्रदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल व सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई वेबीनारो व फेसबुक लाइव प्रसारण पर विभिन्न मंचों के माध्यम से अपने मौलिक विचारों का प्रकटीकरण करते रहते है। शिक्षक संगठन व सामाजिक संगठनों में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए निरंतर सामाजिक सुधारों की ओर अग्रसर है।
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