किसान जो हमेशा सब का पेट भरता है कभी-कभी खुद भूखा रह जाता है। उसी अन्नदाता की व्यथा को बयान कर रही है यह छोटी कविता किसान पर :-

छोटी कविता किसान पर

छोटी कविता किसान पर

चलो आज बात करते है।
धरती पुत्र बलिदानी की।
स्वयं शीत ताप सब सहता है।
कभी भी ना नूकर नहींं करता है।

जो देश कीअर्थव्यवस्था का मुख्य आधार।
पर खुद की ही नाव खड़ी है मझधार।
एक दो नहीं परेशानियों का है तांता।
ऋण में ही पैदा होता,कभी उऋण क्यों नहींं होता?

उसको लूटते बाजार और व्यापारी।
पर आह नहींं करता उसकी है लाचारी।
उसकी आह को कम मत आंकना।
उसने कर दिए हाथ खड़े तो अन्न के लिए तांकना।

अब भी उसके बलिदान को सम्मान दो।
मेहनत,लागत सबका भुगतान दो।
नहीं तो वह दिन दूर नहीं।

जब पैसा तो होगा, पेट
मे दाना नहीं होगा।
किसान की व्यथा को मत लो अन्यथा।
ध्यान से सुन लो उसकी गाथा और कथा।

अगर टूट गया धैय उसका।
डूब जाएगा हर फूल चमन का।
अभी भी देर नहीं हुई है
कर लो उसकी आय को भी पक्का।
वह रहेगा खुश,तो
दुनिया भी रहेगी खुश।


रचनाकार का परिचय
हंसराज "हंस"
हंसराज “हंस” जी गत 30 वर्षो से अध्यापन का कार्य करवा रहे है। शिक्षा मे नवाचारों के पक्षधर है। “हैप्पी बर्थडे” “गांव का अखबार” इनके शैक्षिक नवाचार है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं में संदर्भ व्यक्ति (रिसोर्स पर्सन) के रूप में 8-10 वर्षों का अनुभव रखते है। तात्कालिक मुद्दों, जयंतियों व सामाजिक कुरीतियों पर आलेख लिखते रहते। मौलिक लेख विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व देश व प्रदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल व सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई वेबीनारो व फेसबुक लाइव प्रसारण पर विभिन्न मंचों के माध्यम से अपने मौलिक विचारों का प्रकटीकरण करते रहते है। शिक्षक संगठन व सामाजिक संगठनों में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए निरंतर सामाजिक सुधारों की ओर अग्रसर है।

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