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हिंदी कविता विरह वेदना
मैं विरह की वेदना लिखूं या मिलन की फुहार
अब तू ही बता कैसे लिखूं थोड़े शब्दों में सारा प्यार,
रेत ही रेत है धूप में राह है,
रेगिस्तानों में जीने का ढंग आ गया।
मन निराशा में है अन्तर्मन आशा में है
अब हृदय में लगी उजाले की एक आश है।
जीत ही जीत में शेष कुछ भी नहीं
जन्नतो का सफर इस कदर आ गया ।
मिली आघातों में एक नई सोच है ,
उम्मीदों में गजब का नशा छा गया ।
भावनाएं नहीं दिल की बदली मगर ,
चाहतों में अजब सा जूनू छा गया।
राह विरानो में एक लहर है चली ,
तूफ़ानों में नया मोड़ लाने का मन आ गया ।
सो रहा था मुझको झकझोर कर देखो
सूरज जगाने को खुद आ गया ।
रेत ही रेत है धूप में राह है ,
रेगिस्तानों में जीने का ढंग आ गया ।
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रचनाकार कर परिचय :-
नाम – अवस्थी कल्पना
पता – इंद्रलोक हाइड्रिल कॉलोनी , कृष्णा नगर , लखनऊ
शिक्षा – एम. ए . बीएड . एम. एड
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धन्यवाद।
Very your nice your kavita
Bahut sunder likha