कर्म पर कविता :- कर्मों का खेल | Hindi Poem On Karma
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कर्म पर कविता

कर्मों का खेल न जाने मानव,संसार में।
बिक रहा है हर एक पैसों की,झंकार में।
यह जींवन दान दिया हमें,जिस ईश्वर ने,
प्रेम उसी का भूला जग के,झूठे प्यार में।
कर्मों का……………………………………….
भाई-भाई का बना है दुश्मन,संसार में।
भोग-विलास ही ढूंढ रहे तन,संसार में।
सब रिश्ते- नाते बदल रहे,दिन रात हैं,
मात-पिता से बड़ा दिखा धन,संसार में।
कर्मों का……………………………………….
परम पिता परमेश्वर को मानव,भूल गया।
स्वार्थ में अपने ही अब तो वह,डूब गया।
करके किनारा सत्य-अहिंसा की राह से,
परमात्मा से सोच तू कितना, दूर गया?
कर्मों का……………………………………….
कर्म के बंधन में बंधा है मानव, संसार में।
कुछ करके दुष्कर्म बने हैं दानव,संसार में।
जो बस सत्य-धर्म के मार्ग को अपनाएगा,
बस वही मोक्ष को पाएगा, संसार में।
कर्मों का……………………………………….
कर्म बंधन में बंधे कृष्ण थे और,राम भी।
हरिश्चन्द्र,दशरथ,और अब्दुल,कलाम भी।
हर कर्म को जो जी लेगा बस सदभाव से,
उसका अन्त समय उद्धारक होगा,अंजाम भी।
कर्मों का……………………………………….
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मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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