मनुष्य को जन्म देने वाली माँ जन्म के पहले से लेकर बच्चे के बड़े होने तक बहुत कष्ट सहती है। माँ के त्याग और बलिदान को समर्पित ( Maa Ki Mahima Kavita ) माँ की महिमा कविता ” माँ लाकर इस दुनिया में “

माँ की महिमा कविता

माँ की महिमा कविता

माँ लाकर इस, दुनिया मे हमको
उपकार एक, असीम करती हो।
नौ माह कोख में, अपनी रखकर,
जाने कितनी पीड़ायें, सहती हो।
तुमने न जाने, त्याग किये कितने,
हमको ही सुख, देने की खातिर,
देकर सम्पूर्ण, स्नेह जग का तुम,
माँ संस्कार सन्तन, में भरती हो।

रहें हों कितने ही, आंख में आँसू,
अपने दुःख,बच्चों से छुपाती हो।
छुपाकर दुनियां, की नजरों से,
अपने आँचल में, दूध पिलाती हो।
संतान रह जाए, भूखी जब तक,
तब तक माँ की क्षुदा न मिटती है।
तुझमे ही बसा, यह संसार हमारा,
देवी की सूरत, तुझमें दिखती है।

मुझे याद तो नहीं, लेकिन देखा है,
माँ चलना बच्चों को, सिखाती हो।
अपने सीने से, लगाकर सन्तन को,
खेतों में काम करने, तुम जाती हो।
रहे थकावट, काम की कितनी भी,
माँ सभी का ख्याल, फिर रखती है।
तवियत कभी बिगड़े, बच्चों की तो,
माँ की रात फिर, जगकर कटती है।

उम्र के साथ, बच्चों की दिनोंदिन,
शैतानियां कुछ, बढ़ती ही जाती हैं।
कहीं मार न खा लें, पापा की बच्चे,
तो माँ पापा से भी, उन्हें बचाती हैं।
यूँ न कर शैतानियां, सुधर जा बेटा,
बच्चों को चुपके से, फिर कहती है।
चाहे कितना भी, तंग करो माँ को,
माँ फिर भी हर जिद, पूरी करती है।

पढ़ा- लिखाकर, समझा बुझाकर,
माँ बच्चों को, सदा ही रखती हो।
गलत संगत में, न पड़ जायें बच्चे,
माँ इस चिंतन में, डूबी दिखती हो।
घरखर्च से बचे, हुए कुछ पैसों से,
माँ बच्चों के शौक, पूरे करती है।
दिलाने एक मुश्कान, बच्चों को,
माँ दिन-रैन सदैव, लगी रहती है।

करता है कवि, विनती सबसे ही,
कभी माँ को, दुःख न देना तुम।
उसके समस्त, जीवन काल में,
आशीष ही, उसका लेना तुम।
माँ ही है, निज कर्मों से खुद को,
जो जगत में, पूजनीय करती है।
निज संतान की, खातिर ही वह,
कभी कौशल्या, यशोदा बनती है।

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हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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