प्रेम कलश ( द्वितीय सर्ग )

””” मन के तारों के माध्यम से नायक-नायिका का सन्देश सम्प्रेषण ”””

प्राक्कथन — आपस में सूक्ष्म मुलाकात के पश्चात शिव और शिवा अपने -अपने स्थानों को चले जाते हैं । वहीं से मन के तारों को संचार माध्यम बनाकर एक दूसरे को संदेश सम्प्रेषित कर रहे हैं ।

मैं शिव हूँ तुम शिवा कहो ,
क्या तुमसे मेरा नाता है ।
तेरा कोमल मधुर हास ,
रह रह कर याद दिलाता है– 1

होठों पे सुधा का प्याला है ,
औ मन तेरा मतवाला है ।
नयन कँटीले , शब्द रसीले ,
केश प्रेम की ज्वाला हैं– 2

यौवन की मतवाली हो तुम ,
इठलाती बलखाती हो ।
चाल तुम्हारी नागन जैसी ,
अलकों से तरसाती हो –3

हिरनी जैसी आँखों वाली ,
तुमसा कोई मीत नहीं ।
हृदय चीर कर देखो तो ,
तुमसे हटकर प्रीत नहीं–4

रात अँधेरी आती है तो ,
जी मेरा घबराता है ।
आहत हो करुण क्रन्दन से ,
तुमको पास बुलाता है –5

तुम हो जीवन साथी मेरे ,
तुमसे यह जीवन मेरा है।
मेरे इस भोले से उर में ,
तेरा ही बसेरा है — 6

जब याद तुम्हारी आती है तो,
दर्द जिगर में होता है ।
जब सारी दुनिया सोती है तो ,
दिल मेरा यह रोता है–7

हमराही बन जा तूँ मेरे ,
मैं तेरा साथ निभाऊँ ।
दुखियारे भीगे नयनों से ,
तुमको पास बुलाऊँ –8

दिल से निकले गीतों को ,
हम तुमको अर्पित करते हैं ।
तेरी चाहत में ऐ प्रेयसि ,
जान समर्पित करते हैं –9

आँसू के मनकों की माला ,
तुम्हें समर्पण करता हूँ।
खिला हुआ यह प्रेम पुष्प ,
मैं तुमको अर्पण करता हूँ–10

मैं शिवा आप शिव हो मेरे ,
तेरा आराधन करती हूँ ।
तेरे बिन कैसे ऐ प्रियतम ,
जीवन यापन करती हूँ –11

दिवस मास सम हो जाता ,
पल पल घड़ियों के सम है ।
देख मेरे उर को बोलो कुछ ,
क्या हालत यह कम है–12

शिव है बना शिवा के कारण ,
शिवा आपकी बन आयी।
नियति हमारी प्रकृति तुम्हारी ,
एक मंच पर है लायी –13

आप बताओ मुझे दया कर ,
क्यों हिय पर मेरे डेरा ।
क्षमा करें यह प्रश्न नहीं ,
मेरा ही तुमपे बसेरा–14

हमनें ही जलाये प्रेम दीप ,
अब हम दोनों जलते हैं ।
दोनों ही राह चले काँटों के ,
दोनों को पल पल चुभते हैं–15

आप पूछती कैसी हो ,
क्या अपनी हाल सुनाऊँ ।
मैं रो रो कर सिसक सिसक के,
अपनी रात बिताऊँ–16

दर्द भरी वाणी से कहती ,
अपनी करुण कहानी ।
प्रेम पथिक बन चलती रहती ,
फिरती हूँ अनजानी–17

नयनों में समाया रूप आपका ,
मुझको तरसाता है ।
हृदय आपका प्रेम कलश ,
जो प्रेम बूँद बरसाता है–18

सँवरे बदले बाल घनेरे ,
श्याम घटा बन जाते हैं ।
यही घटायें आँसू बनकर ,
आँखों में छा जाते हैं–19

This Post Has 3 Comments

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    Omprakash Chaubey

    अत्यंत सुन्दर एवं मनमोहक रचना

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    जितेन्द्र जी

    बहुत ही सुंदर रचना। वियोग शृंगार का अच्छा वर्णन, प्रकृति वर्णन वर्णन भी अच्छा है। नायिका के विरह को और दर्शाया जा सकता था। नायक-नायिका के बिछड़ने का कारण स्पष्ट नहीं है। छंदों में कसावट नहीं है, लयबद्धता की कमी है, पढ़ने में खटकते हैं। कहीं- कहीं व्याकरणात्मक त्रुटियां हैं। भावों के दृष्टिकोण से अच्छी रचना।

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    Om prakash Chaubey

    Adarnya jitendra ji ! Apne reaction diya ki rachna sundar h , bhav achchhe hain , viyog aur sanyog ka varnan bhi bhut khoobsoorat dhhang se kiya gya h .
    Fir ye kahna ki kasavat nhi chhadon me , laybadhata nhi h , avashyak aur uchit nhi lgta , kyuki har vyakti apne andaj me read krta h . Mujhe aisa kuchh nhi lgta . Reaction savdhani poorvak diya jana chahiye , kuki rachnakar apni poori chhamta se rachana krta h , rachnakar ke mnobal ko shayad aghat pahuche aise reaction se . Aise reacion se bcha jana chahiye .
    Thank u.

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