प्रेम कलश ( तृतीय सर्ग )
“”बसंत ऋतु के अवसर पर दोनों के सम्मिलित विचार एवं मिलन””

प्राक्कथन– प्रस्तुत पद्यांश में वसंत ऋतु के मादक अवसर पर नायक शिव और नायिका शिवा के मिलन एवं उनके सम्मिलित भावनाओं का चित्रण किया गया है । नायक शिव के हृदय चक्षुओं से उसकी अपनी नायिका शिवा कैसी दिख रही है , साथ ही शिवा का साज- श्रृंगार कैसा है , इन्हीं अनुभूतियों का चित्रांकन है ।

जूही गुलाब गेंदा पलाश ,
बेला कनेर के पुष्प खिले ।
ऋतुओं का राजा वसंत है ,
सबको लेकर हिले मिले–1

शिव गुलाब फूलों का राजा ,
शिवा लिली फूल की रानी ।
चम्पा है कलियों की देवी ,
रूप सुगन्ध सुहानी–2

अढ़वुल कुन्द केतकी बेइल ,
गुलदाउदी चमेली छाये ।
हम दोनों को एक बनाने ,
मानो जाल बिछाये–3

नर्तन करती बसुन्धरा पर ,
खिली हुई हैं सरसों ।
आ जाओ बरसों के भूले ,
मिल जायें हम परसों–4

मन्द पवन के झोंके बन ,
मकरन्द लिये तुम आ जाओ ।
झुरमुट में बैठी हूँ प्यासी ,
आकर प्यास बुझा जाओ–5

शाम हुई जाती है प्यारे ,
पक्षी गण कलरव करते ।
कलरव भी कानों में आकर ,
विरह वेदना भरते–6

धाराएँ आँसू की बहती ,
नयनों से झर झर अविरल ।
होते कपोल से आगे बढ़ती ,
छूती उर के अन्तःस्थल–7

अश्रुबिंदु मिल गये एक में ,
और गले का हार बनें ।
अश्रुबिंदु की माला मुझको ,
तेरा हैं उपहार बनें–8

रजनी आई घोर अँधेरी ,
नीरवता संग में लाई ।
अंग सिथिल होते प्यारे ,
औ नींद नहीं मुझको आई–9

अरे कृपा कर बतलाओ ,
क्यों मन को तुम पकड़ी हो ।
प्रेम शक्ति के जंजीरों में ,
शिवा हमें जकड़ी हो–10

मेरे नयनों में नयन डाल ,
समझो मेरी मजबूरी ।
थोड़े ही दिनों की बात शिवा ,
फिर न रहेगी दूरी–11

शिव की बाधाएँ प्रेयसि ,
ना समझो कुछ कम हैं ।
सहजन प्रियजन जन जन के ,
चलते आँखें ए नम हैं–12

तुमको क्या तुम पुरूष जाति हो ,
तुम पर ना कोई पहरा ।
मुझ पर प्रियजन परिजन सबका ,
पल पल रहता पहरा–13

मैं जब भी अकेला होता हूँ ,
यादों में चली तुम आती हो ।
तन मन में स्पन्दन होता ,
बीते दिन याद दिलाती हो–14

प्रथम बार जब मिलन हुआ तो ,
खुशियों के बादल छाये ।
खुशियों की बारिश में भीगे ,
हम फूले नहीं समाये–15

नयी नवेली नूतन सी नायिका ,
बन सज के शिवा सँवरी थी ।
मानो रति श्रृंगार सजा कर ,
आज अवनि पर उतरी थी–16

रक्तिम वर्ण सजे अधरों से ,
छलक रही थी मधुशाला ।
तिल निशान अधरों के नीचे ,
बना रहे थे मधु प्याला–17

नासिका सुशोभित रत्नों से ,
वह मन्द मन्द मुसकाती थी ।
दमक रही दाँतों की दतियां ,
गीत मिलन के गाती थी–18

लाल नारंगी वासंती मिल ,
रंग कपोल पर छाये ।
रह रह करते प्रणय निवेदन ,
अपनी ओर झुकाये–19

अभरन शोभित था ललाट ,
माथे पे मोती बूँद खिली ।
सतरंगी मोती की बूँदें ,
आपस में थी हिली मिली–20

कजरारे नयनों के कोने ,
कुसुमायुध से दिखते थे ।
चंचल चतुर चपल चालों से ,
मुझको घायल करते थे–21

चमक रहा था आभूषण ,
मस्तक पर जैसे चाँद खिला ।
केश जाल में फँसा हुआ पर ,
बेचारे को नहीं गिला–22

मोती की माला पड़ी गले में ,
कंगन खन खन करते थे ।
कटि प्रदेश से नवल नटी थी ,
नूपुर छन- छन करते थे–23

नाखून विविध रंगों में थी ,
पायल भी शोर मचाती थी ।
शिव शिवा शिवा शिव की निनाद ,
नभ मंडल से आती थी–24

शिवा श्रवण सुन्दर से दिखते ,
कानों में कुन्डल लटक रहे ।
चूमें कपोल को रह रह कर ,
मानों वे रुक रुक अटक रहे–25

आकर्षक परिधानों में वह ,
बनी हुई थी मधुबाला ।
तन के श्रृंगारों से मुझको ,
पिला रही थी मधु प्याला–26

श्रृंगार देखता पल पल मैं ,
मदहोश हुए जाता था ।
व्याकुलता बढ़ती जाती थी ,
मद मस्त हुए जाता था–27

मधुबाला के मधुशाला से ,
निकल रहा रस मधु वाला ।
आकर एकत्रित होते वे ,
भर जाता मधु का प्याला–28

मधु प्याला ले हाथों में ,
जब अधरों से मैं पान किया ।
हुआ शरीर में स्पन्दन औ ,
प्रेम सलिल से स्नान किया–29

नयनों से छलकी मदिरा ,
आ गिरी धरा पर कहती थी ।
अब प्रेम करो ना देर करो ,
रह रह आवाज निकलती थी–30

आलिंगन शिव का करती मैं ,
सुधि बुधि खोती जाती थी ।
शिव के कोमल स्पर्शों से ,
आनन्द मधुर मैं पाती थी–31

प्रेमालाप बढ़ा आगे ,
फिर अनंग अंग में व्याप्त हुआ ।
प्रेम बूँद की बारिश से तब ,
अंग अंग फिर शान्त हुआ–32

This Post Has 3 Comments

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    Omprakash Chaubey

    अत्यंत सुन्दर एवं मनमोहक रचना

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    जितेन्द्र जी

    बहुत ही सुंदर रचना। वियोग शृंगार का अच्छा वर्णन, प्रकृति वर्णन वर्णन भी अच्छा है। नायिका के विरह को और दर्शाया जा सकता था। नायक-नायिका के बिछड़ने का कारण स्पष्ट नहीं है। छंदों में कसावट नहीं है, लयबद्धता की कमी है, पढ़ने में खटकते हैं। कहीं- कहीं व्याकरणात्मक त्रुटियां हैं। भावों के दृष्टिकोण से अच्छी रचना।

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    Om prakash Chaubey

    Adarnya jitendra ji ! Apne reaction diya ki rachna sundar h , bhav achchhe hain , viyog aur sanyog ka varnan bhi bhut khoobsoorat dhhang se kiya gya h .
    Fir ye kahna ki kasavat nhi chhadon me , laybadhata nhi h , avashyak aur uchit nhi lgta , kyuki har vyakti apne andaj me read krta h . Mujhe aisa kuchh nhi lgta . Reaction savdhani poorvak diya jana chahiye , kuki rachnakar apni poori chhamta se rachana krta h , rachnakar ke mnobal ko shayad aghat pahuche aise reaction se . Aise reacion se bcha jana chahiye .
    Thank u.

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