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जन्माष्टमी महोत्सव पर कविता
गोपियों के संग रास रचैया
तुम हो मेरे किशन कन्हैया।
तेरे आराधक तेरे बुला रहे हैं
चले आओ मेरे साॅंवरिया।।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर।
राधा के तुम हो मुरलीधर।।
मेरे लिए तो तुम श्रीराम हो।
और तुम ही मेरे घनश्याम हो।।
प्यासे इन नयनों को
प्यास बुझाने आओ।
मन हो जाए प्रफुल्लित
ऐसी बंशी बजाओ।।
एक बार आओ कान्हा
बांसुरी की स्वर में हम सबको नचाने।
या फिर बनकर आओ राम
हम सबको मर्यादा सिखाने।।
भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष
दिन अष्टमी को श्याम रूप में आओ।
या फिर चैत्र मास शुक्लपक्ष
नवमी को श्रीराम बन आओ।।
श्रीराम मेरे घनश्याम मेरे।
रटू नाम सुबह-शाम तेरे।।
राधारमण हरे श्रीकृष्ण हरे।
मैं नित्य पखारू चरण तेरे।।
तूम प्रेम रंग में मुझको रंग दे।
अंग-अंग में प्रीत के रंग भर दे।।
मीरा नहीं हूॅं मैं,न मैं राधा हूॅं, मैं तुम्हारी दासी हूॅं।
सांवरे-सलोने मैं तुम्हारी प्रेम की प्यासी हूॅं।।
आओ नंदलाला मेरे मनमोहना।
मेरी आराधना तुम सुन लो ना।।
तुम्हें पुकारू हे गोविन्दा,हे गोपाला।
सुन लो पुकार मेरी हे बांसुरी वाला।।
तूने वादा किया था जब-जब पाप बढ़ेगा मैं आऊंगा।
अत्याचारी, पापी,अंहकारी दुष्टों का सर्वनाश करुंगा।।
हमारी रक्षा करने तुमआओ दाता।
हे जगतगुरु, श्रीहरि हे मेरे विधाता।।
मुझ मूढ़,अभागा पर उपकार करो।
दुःख , पीड़ा,कष्ट, संकट मेरे दूर करो।।
इस भयंकर प्रलयकारी संकट से हमें उबारो।
हे सुदर्शन धारी रक्षा करो हमारी रक्षा करो।।
हे पालनकर्ता हे पालन हार।
हे दुःख हर्ता,हे मुरलीधर।।
दिन-दिन ले रही है,जान हमारी।
चुन-चुन के ले रही है, प्राण हमारी।।
रोको-रोको बढ़ रही है, विपत्ति भारी।
आओ-आओ हे नाथ,हे गिरधारी।।
पापी महामारी का, सर्वनाश करो अंतर्यामी।
अधर्मी,अनाचारी का विनाश करो मेरे स्वामी।।
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यह कविता हमें भेजी है बिसेन कुमार यादव जी ने गाँव-दोन्देकला, रायपुर, छत्तीसगढ़ से।
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