प्रेम कलश ( पंचम सर्ग )
” शिवा के प्रेम नगर ( मोहनी नगर ) का चित्रण एवम नायक- नायिका ( शिव – शिवा ) का महामिलन “

प्राक्कथन– “” शिव और शिवा में वियोग होने के पश्चात शिवा मोहनी नगर ( प्रेम नगर ) पहुँचती है । मोहनी नगर की प्राकृतिक सुषमा और प्राकृतिक सौन्दर्य कैसा है , वहाँ का प्रशासन , प्रशासन का संचालन करने वाली शिवा की सहेलियाँ कौन- कौन हैं , कौन – कौन सहेली किस -किस विभाग का काम सम्पन्न करती हैं , और सहेलियों के विचार -भाव तथा उनकी सुन्दरता कैसी है , आदि का वर्णन किया गया है ।

अंत में शिव और शिवा दोनों का महा मिलन होता है ।अंततोगत्वा दोनों उसी प्रेम कलश में समाहित होते हैं , जिस प्रेम कलश से उनकी उत्पत्ति हुई थी । यहीं पर टूटा हुआ प्रेम कलश पूर्ण हो जाता है । साथ ही प्रेम कलश खण्ड काव्य भी पूर्ण होता है । “”

मोहनी नगर था मनमोहक ,
सौन्दर्य नियति से सजा हुआ ।
जहाँ प्रकृति सुषमा बिखेरती ,
वन उपवन से भरा हुआ– 1

था दृश्य विहंगम हरियाली का ,
तोरण द्वार सजे थे ।
नव किसलय अगवानी करते ,
उनके माथ झुके थे– 2

सम शीतोष्ण रहा मौसम ,
औ निर्मल धरा गगन था ।
चप्पे चप्पे में चेतना नयी थी ,
कण कण हुआ मगन था– 3

मोहनी नगर को विश्वकर्मा ने ,
रूप अलौकिक दान किया ।
पग पावन पड़ते ही शिवा के ,
प्रेम नगर का रूप लिया– 4

प्रेम नगर के प्रेम कुन्ज में ,
प्रेम नाद भर आई ।
कोयल गण के कोमल कंठो नें ,
मुरली मधुर बजाई– 5

सतरंगी परिधान बनाकर ,
धरती हर्षित होती थी ।
आनन्द अखंड प्रकाश किरण आ ,
बीज प्रेम के बोती थी– 6

फूलों के छन्दों से प्यारी ,
आवाज़ मधुर आती थी ।
रस भरे सुरीले लय तानो से ,
संगीत प्रेम की आती थी– 7

शिवा चली तब प्रेम भवन को ,
जिसकी छँटा निराली थी ।
प्रेम रंग में सजा हुआ था ,
जिसकी प्रभा निराली थी– 8

भवन मध्य में शयनकक्ष था ,
जहाँ शिवा आराम किया ।
अत्यंत थकी हारी थी शिवा ,
सो पूर्ण रूप विश्राम किया– 9

था स्वच्छ प्रशासन प्रेम नगर का ,
वितरित सबको काम रहा ।
प्रेमा , मृगनयनी , कमला थी ,
और लालिमा नाम रहा–10

सादर मिलना आगन्तुक से ,
मृगनयनी ही करती थी ।
आवभगत के प्रेम सुमन भर ,
डलिया में रखती थी–11

चरण चाप कर सेवा करना ,
जिसका सेवा काम रहा ।
बदन दबा कर दर्द मिटाना ,
प्रेमा उसका नाम रहा–12

नित्य सुबह प्रक्षालन करके ,
गृह को स्वच्छ बनाती थी ।
प्रेम सदन के दीवारों पर ,
सुन्दर चित्र सजाती थी–13

दैनिक मासिक और वार्षिक ,
नित्य सफाई होती थी ।
कमला कुशल सभी कामों में ,
नींद चैन के सोती थी–14

पाककला की पारंगत जो ,
व्यंजन विविध बनाती थी ।
लालिमा दक्ष थी पंडित थी ,
जो गीत मनोहर गाती थी–15

लालिमा स्वच्छ थी सुन्दर थी ,
वह सुडौल शरीर लिये थी ।
मुखमण्डल पर थी अजब लालिमा ,
प्रेम प्रकाश लिये थी–16

प्रेम मूर्ति सी थी प्रेमा ,
जो प्रेम रंग बरसाती थी ।
प्रेम वदन के प्रेम नयन से ,
प्रेम भाव दर्शाती थी–17

मृगनयनी के भाव निराले ,
नयन कँटीले थे उसके ।
कान्ति युक्त था आनन उसका ,
शब्द रसीले थे उसके–18

कमलानन था कमल सरीखे ,
कंज समान खिली थी ।
देवी लगती प्रक्षालन की ,
माथे मोती बूँद खिली थी–19

प्रेमा जगी शिवा से बोली ,
जग जाओ अब भोर हुआ ।
तरुओं की डाली पर देखो ,
पक्षी गण का शोर हुआ–20

नभमन्डल से लाल लालिमा ,
लाल रंग ले आई ।
दिनकर की पावन प्रभा पुन्ज से ,
धरती है छवि पाई–21

बिखरी ओस कणों की बूँदें ,
ना जानें कब दूर हुई ।
खिली कुमुदिनी की आशाएँ ,
किरणों से अब चूर हुईं–22

चहक रहे खग वृन्द हवा में ,
आनन्दित हो मस्त हुए ।
कुछ क्षुधा तृप्ति की आशा में थे ,
भ्रमण कार्य में व्यस्त हुए–23

सरोवर समीप सूरज की किरणें ,
आकर जल से खेल रहीं ।
बहते शीतल वायु वेग की ,
लहरों को हैं झेल रहीं–24

सविता आकर्षक किरणों ने ,
जल को सुनहरा रंग दिया ।
मानों जीवन यापन करने का ,
एक अनोखा ढंग दिया–25

बन्द गुलाब की पंखुड़ियों में ,
जो भ्रमर रात भर व्याकुल था ।
तम के मारे तड़प रहा जो ,
बाहर आने को आकुल था–26

छिन्न भिन्न कर तिमिर दलों को ,
अलि का बन्धन काट दिया ।
मुक्त कराकर सुमन पाश से ,
रवि ने जीवन दान दिया–27

पर्वत के उन्नत शिखरों पर ,
अब किरणों का ही राज हुआ ।
सिंह गर्जना के साथ धरा पर ,
सविता का ही राज हुआ–28

समय बदलता रहता प्रतिक्षण ,
यह एक अकाट्य नियम है ।
साथ समय के चलना ही तो ,
जीवन का संयम है–29

प्रेमा की प्रेम भरी वाणी का ,
जब शिवा श्रवण रसपान किया ।
उठी तरंगें बेसुध तन में ,
जग कर शिव का नाम लिया–30

नित्य क्रिया से हो निवृत्त ,
ठंडे जल से स्नान किया ।
प्रेम नगर के भ्रमण हेतु वह ,
सखियों संग प्रस्थान किया–31

नये नये कौतूहल पथ में ,
उन सबको आकर्षित करते ।
सौन्दर्य विविध पथ में पड़ते पर ,
नहीं शिवा को हर्षित करते–32

सामने सरोवर आया तो ,
दिखा अनोखा दृश्य वहीं ।
एक पक्षियों का जोड़ा ,
आनन्दित करता नृत्य वहीं–33

बेसुध होने लगी शिवा ,
मन में शिव याद समायी ।
पड़े धरा पर घायल शिव की ,
आज याद है आयी–34

गिर गई अवनि पर हो अचेत ,
अपने शिव को आवाज़ दिया ।
आ जाओ आखिरी मिलन है ,
लटपट स्वर में फरियाद किया–35

हाहाकार पुकार चली ,
शिव जहाँ अचेत पड़ा था ।
कन्टकाकीर्ण कृस गात बना ,
धरती पर निश्चेत पड़ा था–36

वेदना समन्वित मर्माहत ,
वाणी जब मुख से उच्चरित हुई ।
संचार बनाकर मन तारों को ,
गतिमान वहाँ से त्वरित हुई–37

सहसा धधकी बिरह अनल ,
शिव का उर झकझोर उठा ।
खड़ा एकाएक हुआ धरा पर ,
शिवा शिवा का शोर उठा–38

गतिमान हुआ तब वायुवेग से ,
शिवा समीप वह जा पहुँचा ।
रुक जा मत जा छोड़ मुझे ,
मैं तुमसे मिलने आ पहुँचा–39

शिवा सुनी शिव की वाणी ,
तब आशा भरे नयन खोली ।
आर्तनाद औ बुँद बुँद स्वर में ,
शिव को देख रही बोली–40

दो हाथ मेरे हाथों में ,
औ अभी करो यह वादा ।
अन्तिम यात्रा साथ चलेगी ,
टूटेगा ना यह वादा–41

इतना कहते -सुनते ही ,
चारों नम आँखें बन्द हुई ।
इंगला पिंगला और सुषुम्ना ,
इन सबकी गतियाँ मन्द हुई–42

चल पड़े आखिरी बार साथ ,
चर अचर रुदन करते थे ।
गगन धरा दिनकर मिल सारे ,
रह रह आहें भरते थे–43

देख दशा दोनों क सबने ,
हाथ जोड़ सम्मान किया ।
कमला प्रेमा लालिमा मृगी ने ,
नमीभूत प्रस्थान किया–44

प्रेम कलश हो गया पूर्ण ,
दोनों ही उसमें वास किये ।
जगत् देखता रहा उन्हें ,
शिव शिवा आखिरी साँस लिये–45

पढ़िए :- शिव शंकर पर कविता | सच में हो तुम महादेव


रचनाकार का परिचय

रूद्र नाथ चौबे ("रूद्र")नाम – रूद्र नाथ चौबे (“रूद्र”)
पिता- स्वर्गीय राम नयन चौबे
जन्म परिचय – 04-02-1964

जन्म स्थान— ग्राम – ददरा , पोस्ट- टीकपुर, ब्लॉक- तहबरपुर, तहसील- निजामाबाद , जनपद-आजमगढ़ , उत्तर प्रदेश (भारत) ।

शिक्षा – हाईस्कूल सन्-1981 , विषय – विज्ञान वर्ग , विद्यालय- राष्ट्रीय इंटर कालेज तहबरपुर , जनपद- आजमगढ़ ।
इंटर मीडिएट सन्- 1983 , विषय- विज्ञान वर्ग , विद्यालय – राष्ट्रीय इंटर कालेज तहबर पुर , जनपद- आजमगढ़।
स्नातक– सन् 1986 , विषय – अंग्रेजी , संस्कृत , सैन्य विज्ञान , विद्यालय – श्री शिवा डिग्री कालेज तेरहीं कप्तानगंज , आजमगढ़ , (पूर्वांचल विश्व विद्यालय जौनपुर ) उत्तर प्रदेश।

बी.एड — सन् — 1991 , पूर्वांचल विश्व विद्यालय जौनपुर , उत्तर प्रदेश (भारत)
साहित्य रत्न ( परास्नातक संस्कृत ) , हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद , उत्तर प्रदेश

पेशा- अध्यापन , पद – सहायक अध्यापक
रुचि – आध्यात्मिक एवं सामाजिक गतिविधियाँ , हिन्दी साहित्य , हिन्दी काव्य रचना , हिन्दी निबन्ध लेखन , गायन कला इत्यादि ।
अबतक रचित खण्ड काव्य– ” प्रेम कलश ” और ” जय बजरंगबली “।

अबतक रचित रचनाएँ – ” भारत देश के रीति रिवाज , ” बचपन की यादें ” , “पिता ” , ” निशा सुन्दरी ” , ” मन में मधुमास आ गया (गीत) ” , ” भ्रमर और पुष्प ” , ” काल चक्र ” , ” व्यथा भारत की ” इत्यादि ।

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धन्यवाद।

This Post Has 3 Comments

  1. Avatar
    Omprakash Chaubey

    अत्यंत सुन्दर एवं मनमोहक रचना

  2. Avatar
    जितेन्द्र जी

    बहुत ही सुंदर रचना। वियोग शृंगार का अच्छा वर्णन, प्रकृति वर्णन वर्णन भी अच्छा है। नायिका के विरह को और दर्शाया जा सकता था। नायक-नायिका के बिछड़ने का कारण स्पष्ट नहीं है। छंदों में कसावट नहीं है, लयबद्धता की कमी है, पढ़ने में खटकते हैं। कहीं- कहीं व्याकरणात्मक त्रुटियां हैं। भावों के दृष्टिकोण से अच्छी रचना।

  3. Avatar
    Om prakash Chaubey

    Adarnya jitendra ji ! Apne reaction diya ki rachna sundar h , bhav achchhe hain , viyog aur sanyog ka varnan bhi bhut khoobsoorat dhhang se kiya gya h .
    Fir ye kahna ki kasavat nhi chhadon me , laybadhata nhi h , avashyak aur uchit nhi lgta , kyuki har vyakti apne andaj me read krta h . Mujhe aisa kuchh nhi lgta . Reaction savdhani poorvak diya jana chahiye , kuki rachnakar apni poori chhamta se rachana krta h , rachnakar ke mnobal ko shayad aghat pahuche aise reaction se . Aise reacion se bcha jana chahiye .
    Thank u.

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